मोटापा के कारण होने वाले रोग
मोटापा है कई क्रॉनिक डिजीज बीमारियों की जड़ है. शरीर में मौजूद पेंक्रियाज इंसुलिन हॉर्मोन बनाता है, जो फैट को शूगर सेल्स तक ले जाता है और शरीर को उर्जा प्रदान करता है. इंसुलिन रेसिस्टेंट में अतिरिक्त फैट शरीर के फैट सेल्स के बजाय लिवर में स्टोर होने लगता है. जिन लोगों को जेनेटिक या ऑटो इम्यून डिसआर्डर लाइपोडिस्ट्रोफी हो यानी जिनके शरीर में फैट सेल्स की कमी हो, उन लोगो पर इसका असर ज्यादा पड़ता है.
लिवर को खतरा लिवर में अतिरिक्त फैट स्टोर होने से ग्लूकोज (शूगर) के उत्पादन से ईसुलिन रेसिस्टेंट बढ़ जाता है. इससे लिवर सेल्स डैमेज होने लगते हैं. फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है.
डायबिटीज मसल्स में स्टोर हुआ अतिरिक्त फैट, फैट को शूगर सेल्स तक ले जाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में बाधा डालता है. इससे पेंक्रियाज में इंसुलिन की मात्रा बढ़ने लगती है और ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है, मोटापा इंसुलिन उत्पन्न करने की शरीर की क्षमता को भी प्रभावित करता है, जिन लोगों को जेनेटिक डायबिटीज का ख़तरा है, उन्हें इंसुलिन रेसिस्टेंट होने से पंक्रियाज के आइसलेट सेल्स खत्म होने लगते हैं और प्रभावित व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका रहती।
डिप्रेशन मोटे और बेडौल फिजिक की वजह से कई लोग इसी का पात्र बनते हैं. इससे वे डिप्रेशन में चले जाते हैं. फ़िगर के प्रति सचेत युवा मोटापा कम करने के लिए एनोरेक्सिया वार्सिलोवा की तरफ भी चले जाते है यानी खाना-पीना बंद कर देते है और कई बार अपनी जान तक
हार्ट अटैक ग्रेन स्ट्रोक का रिस्क असामान्य लिपिड लेवल का परिणाम है मोटापा यह कार्डियोवस्कुलर बीमारी के आँखिम से भी जुड़ा है. लिपिड शरीर में फैटी एसिड यौगिकों का समूह एचडीएल (गुड फोलेस्ट्रॉल एलजीएल बैंड कोलेस्ट्रॉल और दाइग्लिसराइड ट
ओब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया (ओएसए) मोटे लोगों की गर्दन के पास एक्स्ट्रा फैट स्टोर हो जाता है, जिससे लग्स तक जाने वाला एयर पैसेज अवरुद्ध हो जाता है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. सोते समय उन्हें सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होती है, उन्हें सांस लेने या डीप बीच के लिए रात को बार-बार उठना पड़ता है. उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है. इसका असर उनकी दिनचर्या पर आसानी से देखा जा सकता है दाई, सोते समय सास न ले पाने से उनकी मौत भी हो जाती है,
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम मोटापे से 11-12 साल की लड़कियों में मासिक चक्र शुरू हो जाता है. लेकिन यह रेगुलर नहीं रहता है, कभी-कभी 2-3 महीने में भी बंद हो जाता है. हॉर्मोनल असंतुलन की वजह से ओवरी में से एग्स का ओवूलेशन हो जाता है. टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की अधिकता से युवतियों में मुंहासे, चेहरे व शरीर पर अनचाहे बाल जैसी समस्याएं देखी जाती हैं. उनमें सेक्स ड्राइव में अरुचि और कंसीव करने में प्रॉब्लम आती है. उन्हें इंफर्टिलिटी का सामना करना पड़ता है. कई बार भ्रूण का विकास ठीक तरह न होने से गर्भपात की आशंका रहती है. इंसुलिन के अधिक स्राव से ब्लड शूगर लेवल बढ़ जाता है, जिससे गर्भवतियों को जेस्टेशनल डायबिटीज होने से दिक्कत होती है. प्रसव के समय भी परेशानी हो सकती है.
कैंसर की आशंका मोटापे की वजह से एंडोमेट्रियल, यूटेराइन, बेस्ट और व कैंसर होने का खतरा रहता है
मोटापे का कोई जादुई समाधान नहीं
मेडिकल साइंस में मोटापे का कोई जादुई समाधान नहीं है, पर जीवनशैली में सुधार, संतुलित खान-पान और नियमित रूप से व्यायाम करने से इसे कंट्रोल किया जा सकता है. कई बार मोटापा खतरनाक स्तर तक बढ़ जाये और सांस लेने में भी तकलीफ होने लगे, तो बैरियाट्रिक सर्जरी की जा सकती है, पर यह तभी सफल होगी, जब सर्जरी के बाद आप अपनी जीवनशैली और खान-पान से जुड़ी आदतों को सुधार लें
मोटापा कंट्रोल करने के ट्रीटमेंट:
बिहेवियर मॉडिफिकेशन: डॉक्टर मोटापा कम करने के लिए मरीज की काउंसेलिंग करते हैं और हेल्दी लाइफ स्टाइल अपनाने की हिदायत देते हैं. शारीरिक संरचना के हिसाब से सही पोषण लेने के बारे में बताते हैं, वेट मैनेजमेंट के लिए तब लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित करते हैं.
फिजिकल एक्टिविटी: फैट बर्निंग के लिए ब्रिस्क वॉक, साइकलिंग, स्वीमिंग, तरह-तरह के गेम्स खेलना जरूरी है. आप योग व जिम का सहारा भी ले सकते हैं.
वेट लॉस प्रोग्राम: मेडिसिन स्पेशियलिस्ट या रजिस्टर्ड डाइटीशियन वेट लॉस प्रोग्राम चलाते हैं. वे मरीज के वजन और कद के हिसाब से बीएमआई चेक कर डाइट चार्ट बनाते हैं, जिसे मरीज को सख्ती से फॉलो करना होता है, अनहेल्दी फूड हैबिट्स को बंद कर हेल्दी बैलेंस्ड डाइट लेना और दिन में भरपेट 3 मील के बजाय 5-6 छोटे मील खाने की हिदायत दी जाती है.
एंटी-ओबेसिटी पिल्स: वेट मैनेजमेंट प्रोग्राम से फायदा न हो, तो ओर्लोस्टैट, लोकसेंरिन, फेंटेरमाइन, टॉपिरामेंट जैसी एंटी ओबेसिटी पिल्स दी जाती हैं. इनसे भूख कम लगती है और कम खाने से वजन कम होता है, पर यह डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए..
सर्जिकल ट्रीटमेंट है लास्ट ऑप्शन
रोग-जनित मोटापे की कैटेगरी में आनेवाले लोगों की सर्जरी की जाती है. यानी जिनकी बीएमआइ 40 से अधिक है या वजन सामान्य से 40 किलोग्राम अधिक है. ऐसे मरीजों के लिएए सर्जिकल ट्रीटमेंट फायदेमंद हो सकता है. डॉक्टर उनकी स्थिति को देखते हुए बैरियाट्रिक कीहोल सर्जरी करते हैं, जो कई तरह की होती हैं, जैसे गैस्ट्रिक स्लीव, गैस्ट्रिक बाइपास, एडजस्टेबल गैस्ट्रिक बैंडिंग आदि. सर्जरी से मरीज के पेट में स्टोर अतिरिक्त फैट को हटाया जाता है. उनके पेट के पहले लेयर को काट कर छोटा कर दिया जाता है, जहां खाना ज्यादा एब्जॉब होता है. हालांकि, इस सर्जरी के साइड इफेक्ट भी होते हैं. भविष्य में ये डाइट में मौजूद विटामिस एब्जॉब नहीं कर पाते हैं. हमेशा टमी फुलर का एहसास रहता है और वे ज्यादा खा नहीं पाते हैं. इससे उनका वजन तो कम हो जाता है, लेकिन पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है, जिसकी आपूर्ति के लिए उन्हें ताउम्र विटामिस सप्लीमेंटस लेने पड़ सकते हैं.